कल्कि भगवान का इतिहास - (History of Kalki Bhagwan)

कल्कि भगवान का इतिहास (History of Kalki Bhagwan) हिन्दू धर्म के मनीयता के अनुसार कहा जाता है कि हिन्दू धर्म में विभिन्न प्रकार के पौराणिक और धार्मिक ग्रंथो है जैसे श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, विष्णु पुराण, और गरुड़ पुराण इत्यादि विष्णु पुराण के में भगवान विष्णु के सभी रूपों का वर्ण मिलता है विष्णु पुराण और कल्कि पुराण दोनों ग्रंथो के अनुसार हिन्दू धर्म के ग्रंथो के रचनाकार श्री महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा रचित विष्णु पुराण और कल्कि पुराण में बतया गया है कि भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार का जन्म का वर्णन मिलता है भगवान विष्णु के दसवें भगवान कल्कि उर्फ कल्किन के बारे में विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की भविष्यवाणी की गयी है


कल्कि पुराण के अनुसार कल्कि भगवान का इतिहास - (History of Lord Kalki according to Kalki Purana)


कल्कि पुराण (Kalki Purana) के अनुसार कल्कि भगवान का इतिहास (History of Kalki Bhagwan) के बारे में बतया गया है कि जैसे जैसे पृथ्वी पर पाप अपनी चरम सीमा के समीप होगा तब भगवानविष्णु के दसवें अवतार कल्कि भगवान पृथ्वी पर जन्म लेंगे कल्कि पुराण के अनुसार [४,३२० वीं शती] में कलियुग का अन्त के समय कल्कि अवतार लेंगें कल्कि पुराण के अनुसार बताया गया है कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान कल्कि सभी ६४ कलाओ में पुणे रूप से निपूण होंगे पौराणिक और धार्मिक ग्रंथो को सभी को जोड़ा जाये तो भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान कल्कि के साथ महाबली हनुमान, भगवान परशुराम, और भी महान लोग के बारे में बतया गया है जिसमे से महाबली हनुमान और अश्वथामा को लोगो के द्वारा देखे गया है 


श्री हरि के दशावतारों के नाम के बारे में जाने जो कल्कि भगवान का इतिहास का ही भाग है - (Know about the names of the Dashavatars of Shri Hari, which is a part of the history of Lord Kalki)


  1. मत्स्य अवतार(Fish avatar) - मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है वैसे तो भगवान विष्णु अवतार के बारे में दो अलग कहानियो का वर्णन मिलता है पहले कहानी के अनुसार बतया गया है कि इस पृथ्वी पर मनु नामक पुरुष हुए वे भगवान विष्णु के परम भक्तों में से एक थे और वे प्रतिदिन के तरह भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दे रहे थे तभी उन्हे मछली ने उनसे कहा कि आप मुझे अपने साथ अपने कमंडल में रखा लो एक राजा को धर्मो के अनुसार क्या करना चाहिए वे उस मछली में अपने साथ ले कर अपने महल के ओर चल दिया थोड़ी देर चलने के बाद मछली का आकार उस कमंडल से अधिक हो गया तब राजा ने उस मछली को एक बड़े  पात्र (बर्तन) में रखा थोड़ी देर बाद उस राजा ने देखा तो तब उस मत्स्य का आकर पात्र से भी बड़ा हो गया था तब राजा ने उस मत्स्य को पास के तालाब या समुदा में डाला फिर से बाही आ इस बार फिर उस मत्स्य का आकर तालाब या समुदा से भी बड़ा था फिर अंत में भगवान विष्णु ने अपने भक्त को दर्शन दिया और बता के आज से ठीक सातवें दिन महाप्रलय आने बारे में बताया और कहा की एक नाव निर्मित करना सभी के प्रकार के जीव-जंतु, जड़ी-बूटी, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को ले कर उस नाव में एकत्रित करने हो कहा और उन के सहित करने हो कहा वही दूसरी मान्यता के अनुसार हयग्रीवासुर नाम के एक दैत्य ने ब्रह्मदेव के द्वारा रचित वेदो को चुरा के समुद्र में गहराईयों में कही छुपा दिया तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार के कर उस दैत्य को मुक्ति दी और वेदो को पुनः स्थापना की 


  1. कच्छप अवतार(Kachhap Avatar) - नरसिंहपुराण के अनुसार, कच्छप अवतार भगवान विष्णु के दूसरा अवतार है कच्छप अवतार ( कछुआ के रूप में अवतार ) को " कूर्म अवतार " भी कहते है। देवराज इंद्र के शौर्य व उन से प्रश्न हो। ऋषि दुर्वासा ने पारिजात पुष्पो के फूलो से निर्मित माला भेंट की परन्तु देवराज इंद्र ने उस पारिजात पुष्पो के फूलो से निर्मित माला को ग्रहण(स्वीकार) न किया। और अपने प्रिये हाथी अर्थ  ऐरावत को पहना दिया।  ऐरावत ने पारिजात पुष्पो के फूलो से निर्मित माला को भूमि मे फेका दिया। ऋषि दुर्वासा के द्वारा के दी गई माला उन्होंने  ऐरावत के द्वारा उस को भूमि में पड़ा देखा तो यह सब दृश्य देखा कर दुर्वासा ऋषि कोपित (क्रोधित) होकर सभी देवताओ को श्राप दे दिया। ऋषि दुर्वासा के अभिशाप के कारण, देवताओ ने अपनी शक्ति छीन भिन्न हो गई. देवताओ के अपनी मदद के लिया परमपिता ब्रह्मा को गुहार लगाई फिर भगवान विष्णु ने सलाह दी कि देवताओ और दैत्यो को मिला कर वे क्षीर समुद्रमंथन करे। इसमें भगवान विष्णु ने  कच्छप अवतार के रूप में प्रकट हुए कच्छप अवतार में श्री  हरि ने क्षीर समुद्रमंथन में मंदार पर्वत को अपने  कवच पर रखा कर मंदार पर्वत को संभाला था समुद्रमंथन से भगवान विष्णु, वासुकि सर्प, और मंदार पर्वत की सहायता से देवताओ और दैत्यो ने मिला कर १४ रत्न प्राप्त किया तथा इस मंथन में १४ (14) रत्न के साथ एक एक घातक जहर भी निकला जिससे समस्त संसार घातक जहर के कारण गहन अंधकार में डूबा गया और सारी दुनिया इससे खतरे में पड़ा गई लेकिन भगवान महादेव ने घातक जहर का सेवन किया तथा उसे अपने कंठ में बरकरार रखा जिससे भगवान महादेव को उस दिन से नीलकंठ नाम पड़ा।


  1. वराह अवतार(Varaha Avatar) - वराह अवतार भगवान विष्णु के तीसरा अवतार है जब जब दुनिया में हिरण्याक्ष जैसे दैत्य के द्वारा धरती पापी और अधर्म को हानि (छटी) होती है तब पाप विनाश के लिए भगवान विष्णु अवतार लेते है  दैत्य हिरण्याक्ष महर्षि मरीचि नन्दन कश्यप जी और राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति( माता दिति कश्यप की पत्नी तथा दैत्यों की माता हैं।) विष्णु पुराण के अनुसार जब  दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी अर्थ दुनिया को अपने अधिन कर के समुद्र की गराईयो में कही छुपा दिया था तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारणा किया था कहा जाता है कि वराह अवतार की उत्पति ब्रह्मा जी की नाशिका (नाक) से भगवान विष्णु वराह अवतार में प्रकट हुए। सभी  देवी - देवताओं, ऋषि-मुनियों, आदि के द्वारा आग्रह करने पर अवतार वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी(नाक) के सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगया और समुद्र की गराईयो में जा कर। भगवान विष्णु ने उस दैत्य से युद्धा किया व उन्होंने उस दैत्य का अंत किया और भगवान विष्णु ने अपने दांतो के बीच में रखा वे पृथ्वी को समुद्र से बाहर ले आये तथा पृथ्वी का कल्याण किया। उनकी शक्ति अथवा पत्नी वाराही के साथ विवाह किया। जो कि माता लक्ष्मी का स्वरूप है 


  1. नृसिंह भगवान(Narasimha Bhagwan) - ग्रंथों के अनुसार नृसिंह भगवान अवतार भगवान विष्णु के चौथा अवतार है नृसिंह का अर्थ है नर + सिंह " मानव +शेर "(ह्यूमन + लायन)। इसमें लक्ष्मीपति नर-सिंह मतलब आधे मनुष्य और आधे शेर के रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया था। जिसमे भगवान विष्णु का सिर एवं धड़ तो मानव का था लेकिन चेहरा और पंजे सिंह के तरह होते है नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए उन्होंने अपने परम भक्त प्रहलाद के पिता राक्षस हिरणाकश्यप अंत किया तथा पुनः दुनिया को पापियों से मुक्त किया। दक्षिण भारत में नृसिंह भगवान को खासकर वैष्णव संप्रदाय के लोगो के द्वारा एक देवा के रूप में उनकी पूजा होती है 


  1. वामन अवतार(Vamana Avatar) - वामन अवतार भगवान विष्णु के पंचम अवतार है पौराणिक मान्यता के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भगवान श्री हरि का पांचवे वामन अवतार के रूप में जन्म लिया तथा इस दिन को वामन द्बादशी के रूप में भी पूजा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, त्रेतायुग के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने   देवी अदिति के गर्भ से उत्प्नना हुए। ये भगवान विष्णु का पहला ऐसे अवतार थे जो मानव के रूप में जन्म लिया था -  - बालक रूपी ब्राह्मण अवतार। जो के महर्षि   कश्यप जी के पुत्र थे  तथा भगवान विष्णु ने देवलोक के राजा इन्द्र उनका अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार रूपा लिया था। असुरराज दैत्य बली के द्वारा देवाराज इन्द्र के देवलोक पर अपना अधिकार जमा लिया। राजा बली विरोचन के पुत्र तथा भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पौत्र थे। और एक दयालु राजा के रूप में भी जाने जाते है राजा बलि ने अपनी  तपस्या व ताक़त के बला से तीनो लोक पर अपने आधिपत्य हासिल कर लिया वामन अवतार में, भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण के बौने ब्राह्मण में राजा बली के पास गया और उनसे अपने रहने के लिए तीन पाग भूमि के बराबर का दान देने के लिए कहा  गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद राजा बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को वचन दे डाला


वामन ने अपना आकर इतना बढ़ा कर लिया के पहले कदम में भूलोक (पृथ्वी) नाप। दूसरे कदम में देवलोक नाप डाला। तीसरे पाग के लिए कोई भूमि ही नहीं। वचन के पक्के राजा बली ने अपने वामन अवतार भगवान विष्णु को अपने तीसरा पाग रखने के अपने अपना सिर  प्रस्तुत कर दिया राजा बली से प्राशन हो कर भगवान विष्णु ने राजा बली को पाताल दे दिया और राजा बली को वहा भेजा दिया।


  1. परशुराम 

  2. श्रीराम 

  3. श्री कृष्ण 

  4. भगवान बुद्ध 

  5. कल्कि अवतार